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Monday, 18 April 2016
अर्जुन के रथ पर क्यों बैठे थे हनुमान, उनके उड़ते ही क्या हुआ?
चैत्र मास की पूर्णिमा को हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 22 अप्रैल, शुक्रवार को है। इस अवसर पर हम आपको बता रहे हैं हनुमानजी से जुड़ी कुछ रोचक बातें। महाभारत के अनुसार, युद्ध के दौरान अर्जुन के रथ पर स्वयं हनुमानजी विराजित थे। युद्ध समाप्त होने के बाद जब हनुमान चले गए तब क्या हुआ, ये पूरा प्रसंग इस प्रकार है-
इसलिए जला अर्जुन का रथ
महाभारत के अनुसार, जब कौरव सेना का नाश हो गया तो दुर्योधन भाग कर एक तालाब में छिप गया। पांडवों को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने दुर्योधन को युद्ध के लिए ललकारा। दुर्योधन तालाब से बाहर निकला और भीम ने उसे पराजित कर दिया। दुर्योधन को मरणासन्न अवस्था में छोड़कर पांडव अपने-अपने रथों पर कौरवों के शिविर में आए। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से पहले रथ से उतरने को कहा, बाद में वे स्वयं उतरे।
श्रीकृष्ण के उतरते ही अर्जुन के रथ पर बैठे हनुमानजी भी उड़ गए। तभी देखते ही देखते अर्जुन का रथ जल कर राख हो गया। यह देख अर्जुन ने श्रीकृष्ण से इसका कारण पूछा? तब श्रीकृष्ण ने बताया कि ये रथ तो दिव्यास्त्रों के वार से पहले ही जल चुका था, सिर्फ मेरे बैठे रहने के कारण ही अब तक यह भस्म नहीं हुआ था। जब तुम्हारा काम पूरा हो गया, तभी मैंने इस रथ को छोड़ा। इसलिए यह अभी भस्म हुआ है।
हनुमानजी ने भीम को वचन दिया था कि जब कौरव व पांडवों में युद्ध होगा, तब वे अर्जुन के रथ पर बैठकर दुश्मनों को भयभीत कर देंगे।
द्रौपदी ने कहा था भीम को कमल लाने के लिए
वनवास के दौरान पांडव जब बदरिकाश्रम में रह रहे थे, तभी एक दिन वहां उड़ते हुए एक सहस्त्रदल कमल आ गया। उसकी गंध बहुत ही मनमोहक थी। उस कमल को द्रौपदी ने देख लिया। द्रौपदी ने उसे उठा लिया और भीम से कहा- यह कमल बहुत ही सुंदर है। मैं यह कमल धर्मराज युधिष्ठिर को भेंट करूंगी। अगर आप मुझसे प्रेम करते हैं तो ऐसे बहुत से कमल मेरे लिए लेकर आइए। द्रौपदी के ऐसा कहने पर भीम उस दिशा की ओर चल दिए, जिधर से वह कमल उड़ कर आया था। भीम के चलने से बादलों के समान भीषण आवाज आती थी, जिससे घबराकर उस स्थान पर रहने वाले पशु-पक्षी अपना आश्रय छोड़कर भागने लगे।
गंधमादन पर्वत पर रहते थे हनुमानजी
कमल पुष्प की खोज में चलते-चलते भीम एक केले के बगीचे में पहुंच गए। यह बगीचा गंधमादन पर्वत की चोटी पर कई योजन लंबा-चौड़ा था। भीम नि:संकोच उस बगीचे में घुस गए। इस बगीचे में भगवान श्रीहनुमान रहते थे। उन्हें अपने भाई भीमसेन के वहां आने का पता लग गया। (धर्म ग्रंथों के अनुसार, हनुमानजी पवन देवता के पुत्र हैं और भीम भी, इसलिए ये दोनों भाई हैं।) हनुमानजी ने सोचा कि यह मार्ग भीम के लिए उचित नहीं है। यह सोचकर उनकी रक्षा करने के विचार से वे केले के बगीचे में से होकर जाने वाले संकरे रास्ते को रोककर लेट गए।
भीम को रोकना चाहते थे हनुमान
भीम को बगीचे के संकरे रास्ते पर लेटे हुए वानरराज हनुमान दिखाई दिए। उनके होंठ पतले थे, जीभ और मुंह लाल थे, कानों का रंग भी लाल-लाल था, भौंहें चंचल थीं तथा खुले हुए मुख में सफेद, नुकीले और तीखे दांत और दाढ़ें दिखती थीं। बगीचे में इस प्रकार एक वानर को लेटे हुए देखकर भीम उनके पास पहुंचे और जोर से गर्जना की। हनुमानजी ने अपनी आंखें खोलकर उपेक्षापूर्वक भीम की ओर देखा और कहा- तुम कौन हो और यहां क्या कर रहे हो? मैं रोगी हूं, यहां आनंद से सो रहा था, तुमने मुझे क्यों जगा दिया? यहां से आगे यह पर्वत अगम्य है, इस पर कोई नहीं चढ़ सकता। अत: तुम यहां से चले जाओ।
भीम ने ऐसे दिया हनुमानजी को अपना परिचय
हनुमानजी की बात सुनकर भीम बोले- वानरराज। आप कौन हैं और यहां क्या कर रहे हैं? मैं तो चंद्रवंश के अंतर्गत कुरुवंश में उत्पन्न हुआ हूं। मैंने माता कुंती के गर्भ से जन्म लिया है और मैं महाराज पाण्डु का पुत्र हूं। लोग मुझे वायुपुत्र भी कहते हैं। मेरा नाम भीम है।
भीम की बात सुनकर हनुमानजी बोले- मैं तो बंदर हूं, तुम जो इस रास्ते से जाना चाहते हो तो मैं तुम्हें इधर से नहीं जाने दूंगा। अच्छा तो यही हो कि तुम यहां से लौट जाओ, नहीं तो मारे जाओगे।
यह सुनकर भीम ने कहा - मैं मरुं या बचूं, तुमसे तो इस विषय में नहीं पूछ रहा हूं। तुम उठकर मुझे रास्ता दो।
हनुमान बोले- मैं रोगी हूं, यदि तुम्हें जाना ही है तो मुझे लांघकर चले जाओ।
भीम की बात सुनकर हनुमानजी बोले- मैं तो बंदर हूं, तुम जो इस रास्ते से जाना चाहते हो तो मैं तुम्हें इधर से नहीं जाने दूंगा। अच्छा तो यही हो कि तुम यहां से लौट जाओ, नहीं तो मारे जाओगे।
यह सुनकर भीम ने कहा - मैं मरुं या बचूं, तुमसे तो इस विषय में नहीं पूछ रहा हूं। तुम उठकर मुझे रास्ता दो।
हनुमान बोले- मैं रोगी हूं, यदि तुम्हें जाना ही है तो मुझे लांघकर चले जाओ।
जब भीम ने हनुमान से मांगा जाने का रास्ता
भीम बोले- संसार के सभी प्राणियों में ईश्वर का वास है, इसलिए मैं तुम्हारा लंघन कर परमात्मा का अपमान नहीं करुंगा। यदि मुझे परमात्मा के स्वरूप का ज्ञान न होता तो मैं तुम्ही को क्या, इस पर्वत को भी उसी प्रकार लांघ जाता जैसे हनुमानजी समुद्र को लांघ गए थे।
हनुमानजी ने कहा- यह हनुमान कौन था, जो समुद्र को लांघ गया था? उसके विषय में तुम कुछ कह सकते हो तो कहो।
भीम बोले- वे वानरप्रवर मेरे भाई हैं। वे बुद्धि, बल और उत्साह से संपन्न तथा बड़े गुणवान हैं और रामायण में बहुत ही विख्यात हैं। वे श्रीरामचंद्रजी की पत्नी सीताजी की खोज करने के लिए एक ही छलांग में सौ योजन बड़ा समुद्र लांघ गए थे। मैं भी बल और पराक्रम में उन्हीं के समान हूं। इसलिए तुम खड़े हो जाओ मुझे रास्ता दो। यदि मेरी आज्ञा नहीं मानोगे तो मैं तुम्हें यमपुरी पहुंचा दूंगा
हनुमानजी ने कहा- यह हनुमान कौन था, जो समुद्र को लांघ गया था? उसके विषय में तुम कुछ कह सकते हो तो कहो।
भीम बोले- वे वानरप्रवर मेरे भाई हैं। वे बुद्धि, बल और उत्साह से संपन्न तथा बड़े गुणवान हैं और रामायण में बहुत ही विख्यात हैं। वे श्रीरामचंद्रजी की पत्नी सीताजी की खोज करने के लिए एक ही छलांग में सौ योजन बड़ा समुद्र लांघ गए थे। मैं भी बल और पराक्रम में उन्हीं के समान हूं। इसलिए तुम खड़े हो जाओ मुझे रास्ता दो। यदि मेरी आज्ञा नहीं मानोगे तो मैं तुम्हें यमपुरी पहुंचा दूंगा
जब हनुमानजी की पूंछ नहीं उठा पाए भीम
भीम की बात सुनकर हनुमानजी बोले- हे वीर। तुम क्रोध न करो, बुढ़ापे के कारण मुझमें उठने की शक्ति नहीं है इसलिए कृपा करके मेरी पूंछ हटाकर निकल जाओ।
यह सुनकर भीम हंसकर अपने बाएं हाथ से हनुमानजी पूंछ उठाने लगे, किंतु वे उसे टस से मस न कर सके। फिर उन्होंने दोनों हाथों से पूंछ उठाने का प्रयास किया, लेकिन इस बार भी वे असफल रहे। तब भीम लज्जा से मुख नीचे करके वानरराज के पास पहुंचे और कहा- आप कौन हैं? अपना परिचय दीजिए और मेरे कटु वचनों के लिए मुझे क्षमा कर दीजिए।
तब हनुमानजी ने अपना परिचय देते हुए कहा कि इस मार्ग में देवता रहते हैं, मनुष्यों के लिए यह मार्ग सुरक्षित नहीं है, इसीलिए मैंने तुम्हें रोका था। तुम जहां जाने के लिए आए हो, वह सरोवर तो यहीं है।
यह सुनकर भीम हंसकर अपने बाएं हाथ से हनुमानजी पूंछ उठाने लगे, किंतु वे उसे टस से मस न कर सके। फिर उन्होंने दोनों हाथों से पूंछ उठाने का प्रयास किया, लेकिन इस बार भी वे असफल रहे। तब भीम लज्जा से मुख नीचे करके वानरराज के पास पहुंचे और कहा- आप कौन हैं? अपना परिचय दीजिए और मेरे कटु वचनों के लिए मुझे क्षमा कर दीजिए।
तब हनुमानजी ने अपना परिचय देते हुए कहा कि इस मार्ग में देवता रहते हैं, मनुष्यों के लिए यह मार्ग सुरक्षित नहीं है, इसीलिए मैंने तुम्हें रोका था। तुम जहां जाने के लिए आए हो, वह सरोवर तो यहीं है।
हनुमानजी ने भीम को बताया था चारों युगों के बारे में
हनुमानजी की बात सुनकर भीम बहुत प्रसन्न हुए और बोले- आज मेरे समान कोई भाग्यवान नहीं है। आज मुझे अपने बड़े भाई के दर्शन हुए हैं। किंतु मेरी एक इच्छा है, वह आपको अवश्य पूरी करनी होगी। समुद्र को लांघते समय आपने जो विशाल रूप धारण किया था, उसे मैं देखना चाहता हूं।
भीम के ऐसा कहने पर हनुमानजी ने कहा- तुम उस रूप को नहीं देख सकते और न कोई अन्य पुरुष उसे देख सकता है। सतयुग का समय दूसरा था और त्रेता और द्वापर का भी दूसरा है। काल तो निरंतर क्षय करने वाला है, अब मेरा वह रूप है ही नहीं।
तब भीमसेन ने कहा- आप मुझे युगों की संख्या और प्रत्येक युग के आचार, धर्म, अर्थ और काम के रहस्य, कर्मफल का स्वरूप तथा उत्पत्ति और विनाश के बारे में बताइए।
भीम के आग्रह पर हनुमानजी ने उन्हें कृतयुग, त्रेतायुग फिर द्वापरयुग व अंत में कलयुग के बारे में बताया।
हनुमानजी ने कहा- अब शीघ्र ही कलयुग आने वाला है। इसलिए तुम्हें जो मेरा पूर्व रूप देखना है, वह संभव नहीं है।
भीम के ऐसा कहने पर हनुमानजी ने कहा- तुम उस रूप को नहीं देख सकते और न कोई अन्य पुरुष उसे देख सकता है। सतयुग का समय दूसरा था और त्रेता और द्वापर का भी दूसरा है। काल तो निरंतर क्षय करने वाला है, अब मेरा वह रूप है ही नहीं।
तब भीमसेन ने कहा- आप मुझे युगों की संख्या और प्रत्येक युग के आचार, धर्म, अर्थ और काम के रहस्य, कर्मफल का स्वरूप तथा उत्पत्ति और विनाश के बारे में बताइए।
भीम के आग्रह पर हनुमानजी ने उन्हें कृतयुग, त्रेतायुग फिर द्वापरयुग व अंत में कलयुग के बारे में बताया।
हनुमानजी ने कहा- अब शीघ्र ही कलयुग आने वाला है। इसलिए तुम्हें जो मेरा पूर्व रूप देखना है, वह संभव नहीं है।
जब हनुमानजी ने भीम को दिखाया अपना विशाल रूप
हनुमानजी की बात सुनकर भीम बोले- आपके उस विशाल रूप को देखे बिना मैं यहां से नहीं जाऊंगा। यदि आपकी मेरे ऊपर कृपा है तो मुझे उस रूप में दर्शन दीजिए।
भीम के इस प्रकार कहने पर हनुमानजी ने अपना विशाल रूप दिखाया, जो उन्होंने समुद्र लांघते समय धारण किया था। हनुमानजी के उस रूप के सामने वह केलों का बगीचा भी ढंक गया। भीमसेन अपने भाई का यह रूप देखकर आश्चर्यचकित हो गए।
फिर भीम ने कहा- हनुमानजी। मैंने आपके इस विशाल रूप को देख लिया है। अब आप अपने इस स्वरूप को समेट लीजिए। आप तो उगते हुए सूर्य के समान हैं, मैं आपकी ओर देख नहीं सकता।
भीम के ऐसा कहने पर हनुमानजी अपने मूल स्वरूप में आ गए और उन्होंने भीम को अपने गले से लगा लिया। इससे तुरंत ही भीम की सारी थकावट दूर हो गई और सब प्रकार की अनुकूलता का अनुभव होने लगा।
भीम के इस प्रकार कहने पर हनुमानजी ने अपना विशाल रूप दिखाया, जो उन्होंने समुद्र लांघते समय धारण किया था। हनुमानजी के उस रूप के सामने वह केलों का बगीचा भी ढंक गया। भीमसेन अपने भाई का यह रूप देखकर आश्चर्यचकित हो गए।
फिर भीम ने कहा- हनुमानजी। मैंने आपके इस विशाल रूप को देख लिया है। अब आप अपने इस स्वरूप को समेट लीजिए। आप तो उगते हुए सूर्य के समान हैं, मैं आपकी ओर देख नहीं सकता।
भीम के ऐसा कहने पर हनुमानजी अपने मूल स्वरूप में आ गए और उन्होंने भीम को अपने गले से लगा लिया। इससे तुरंत ही भीम की सारी थकावट दूर हो गई और सब प्रकार की अनुकूलता का अनुभव होने लगा।
हनुमानजी ने भीम को दिया था ये वरदान
गले लगाने के बाद हनुमानजी ने भीम से कहा कि- भैया भीम। अब तुम जाओ, मैं इस स्थान पर रहता हूं- यह बात किसी से मत कहना। भाई होने के नाते तुम मुझसे कोई वर मांगो। तुम्हारी इच्छा हो तो मैं हस्तिनापुर में जाकर धृतराष्ट्र पुत्रों को मार डालूं या पत्थरों से उस नगर को नष्ट कर दूं अथवा दुर्योधन को बांधकर तुम्हारे पास ले आऊं। तुम्हारी जैसी इच्छा हो, उसे मैं पूरी कर सकता हूं।
हनुमानजी की बात सुनकर भीम बड़े प्रसन्न हुए और बोले- हे वानरराज। आपका मंगल हो। आपने जो कहा है वह काम तो होकर ही रहेगा। बस, आपकी दयादृष्टि बनी रहे- यही मैं चाहता हूं।
भीम के ऐसा कहने पर हनुमानजी ने कहा- भाई होने के नाते मैं तुम्हारा प्रिय करूंगा। जिस समय तुम शत्रु सेना में घुसकर सिंहनाद करोगे, उस समय मैं अपने शब्दों से तुम्हारी गर्जना को बढ़ा दूंगा तथा अर्जुन के रथ की ध्वजा पर बैठा हुआ ऐसी भीषण गर्जना करुंगा, जिससे शत्रुओं के प्राण सूख जाएंगे और तुम उन्हें आसानी से मार सकोगे। ऐसा कहकर हनुमानजी ने भीमसेन को मार्ग दिखाया और अंतर्धान हो गए।
हनुमानजी की बात सुनकर भीम बड़े प्रसन्न हुए और बोले- हे वानरराज। आपका मंगल हो। आपने जो कहा है वह काम तो होकर ही रहेगा। बस, आपकी दयादृष्टि बनी रहे- यही मैं चाहता हूं।
भीम के ऐसा कहने पर हनुमानजी ने कहा- भाई होने के नाते मैं तुम्हारा प्रिय करूंगा। जिस समय तुम शत्रु सेना में घुसकर सिंहनाद करोगे, उस समय मैं अपने शब्दों से तुम्हारी गर्जना को बढ़ा दूंगा तथा अर्जुन के रथ की ध्वजा पर बैठा हुआ ऐसी भीषण गर्जना करुंगा, जिससे शत्रुओं के प्राण सूख जाएंगे और तुम उन्हें आसानी से मार सकोगे। ऐसा कहकर हनुमानजी ने भीमसेन को मार्ग दिखाया और अंतर्धान हो गए।
Sunday, 17 April 2016
भारत में स्मारकों से होती है खूब इनकम, UP है कमाई में नंबर 1
लखनऊ.18 अप्रैल को पूरे देश में वर्ल्ड हेरिटेज डे मनाया जा रहा है। देश में पर्यटन से हर साल भारत और राज्य सरकारों को करोड़ों की कमाई होती है। पिछले 2 सालों का रिकार्ड देखा जाए तो स्मारकों से कमाई के मामले में यूपी ने बाजी मारी है। आज हम आपको देश के प्रमुख स्मारकों की एंट्री फीस और उससे होने वाली एनुअल इनकम के बारे में बताने जा रहे हैं।
इंसान का सिर, लोमड़ी की बॉडी, जानें क्या है इस 'पाकिस्तानी लड़की' की सच्चाई
कराची। पाकिस्तान की रहने वाली एक लड़की की फोटोज इन दिनों सोशल साइट्स पर वायरल हो रही हैं, जिसका नाम मुमताज बेगम है। दरअसल, ये लड़की आधा इंसान और आधी लोमड़ी की तरह दिखती है। कराची जू में रहने वाली इस लड़की को देखने के लिए रोजाना सैकड़ों लोग आते हैं। हालांकि, इसकी सच्चाई कुछ और ही है। फिर क्या है इसकी हकीकत...
दरअसल, कराची जू में मुमताज एक कैरेक्टर है, जो आधी लोमड़ी और आधा इंसान की तरह दिखाई देता है। इस कैरेक्टर को 35 साल के मुराद अली करते हैं। वे कहते हैं कि मुझे पिंजरे के अंदर खुद को छुपाकर लगभग 12 घंटे तक बैठे रहना पड़ता है। इस दौरान लोग मुझसे सवाल भी करते हैं और मैं उन्हें जवाब देता हूं। वे मुझे देखकर खुश होते हैं, तस्वीरें लेते हैं। कई लोगों को लगता है कि मैं रियल में ऐसा ही हूं, इस कारण से वे मेरे बारे में जानना चाहते हैं।
एक टूरिस्ट ने बताया कि मैं पहले अकेले आया था, लेकिन इस बार अपने पड़पोते के साथ आया हूं। वाकई में मुमताज को ऐसे देखना एक अलग अनुभव है। बता दें कि मुमताज का ये रोल पहले मुराद के पिता करते थे, जिनकी मौत 18 साल पहले हो गई। इसके बाद मुराद ने उनकी जगह ले ली। वह दिन में लगातार 12 घंटे तक एक ही पोज में बैठे रहते हैं। इस दौरान उनका सिर लोमड़ी के धड़ के पास होता है, जबकि बाकी बॉडी टेबल के नीचे छुपी होती है। 10 रुपए का टिकट लेकर लोग उन्हें देखते हैं।
कॉलेज में रातभर हुई शराब पार्टी, सुबह तक नशे में पड़े रहे लड़के-लड़कियां
जोधपुर.जोधपुर की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में शनिवार रात को जूनियर स्टूडेंट्स ने सीनियर्स स्टूडेंट्स को फेयरवेल पार्टी दी। कैंपस में हुई इस पार्टी में छात्र-छात्राओं ने जमकर शराब पी और रविवार सुबह तक खूब धमाल मचाया। मामले पर यूनिवर्सिटी प्रशासन अनजान बना हुआ है
टीचर्स के जाते ही शुरू हुई शराब...
- मैनेजमेंट का कहना है कि फेयरवेल में शराब परोसे जाने की कोई जानकारी नहीं है।
- दरअसल, एनएलयू के जूनियर स्टूडेंट्स ने इस वर्ष के पासआउट स्टूडेंट्स को शनिवार रात फेयरवेल पार्टी दी।
- इसमें रात करीब 12 बजे तक केवल नाच-गाना और खाना चला।
- इसके बाद जब फैकल्टी चली गई तो स्टूडेंट्स ने शराब का सेवन शुरू कर दिया।
जूनियर देते हैं पार्टी
- मंच पर स्टूडेंट्स बोतल लेकर नाच-गाना करते रहे।
- एनएलयू के कुलसचिव सोहनलाल शर्मा ने मामले पर कहा कि शराब के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है।
- जूनियर स्टूडेंट्स सीनियर्स को हर साल फेयरवेल पार्टी देते हैं।
- पार्टी में लगाए गए स्टाफ से शराब पिए जाने की जानकारी ली जाएगी।
- यदि वास्तव में ऐसा है तो उनके खिलाफ कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
झरने के नीचे कैसे जलती रहती है आग, देखकर हैरान होते हैं लोग
दुनियाभर में कई ऐसे प्लेसेस हैं, जिनके बारे में जानकर हैरत होती है। कहीं पहाड़ों पर बंद गाड़ियां अपने आप चढ़ने लगती हैं, तो कहीं गहरे कुएं के अंदर से रोशनी निकलती है। ऐसी ही एक जगह न्यूयॉर्क के चेस्टनट रिज काउंटी पार्क में स्थित एक झरना है, जिसे एटरनल फ्लेम फॉल्स कहा जाता है। आखिर क्या है इस झरने की खासियत...
इस झरने की खासियत यह है कि यहां सालभर पानी बहता रहता है और उसके नीचे एक लौ लगातार जलती रहती है। स्थानीय लोग इसे दैवीय चमत्कार मानते हैं। इसको लेकर कई किवदंतियां भी प्रचलित हैं। कुछ लोगों के मुताबिक यह लौ उस समय बुझेगी, जब धरती पर महाप्रलय जैसी कोई आपदा आने वाली होगी। इस झरने को देखने के लिए यहां पर्यटकों और श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
तो सच क्या है?
इंटरनल फ्लेम पर लगातार जल रही इस लौ के बारे में वैज्ञानिकों ने समय-समय पर शोध किए हैं। ताजा शोध इंडियाना यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया, जिसे सबसे ज्यादा सटीक माना जाता है। इस शोध के दौरान वैज्ञानिकों को पता चला की जिस पहाड़ी से होकर यह झरना बहता है, वहां पर चट्टानों के नीचे से मीथेन गैस निकलती है। ऐसा माना जाता है कि 20वीं शताब्दी की शुरुआत में ही किसी ने यहां आग लगाई होगी, जो अब तक लगातार जल रही है। भारत में भी हिमाचल के कांगड़ा में स्थित माता के एक प्रमुख शक्ति पीठ ज्वालामुखी देवी के मंदिर में प्राकृतिक ज्वाला प्राचीन काल से लगातार जल रही है। इसे लेकर भी वैज्ञानिक इसी सिद्धांत पर एकमत हैं
Tuesday, 12 April 2016
MYTH: यहां रात रुकने वाले की हो जाती है मृत्यु, दो चिरंजीवी रोज करते हैं दर्शन
मैहर मंदिर माता
सतना जिले की मैहर तहसील के पास त्रिकूट पर्वत पर बने माता के इस मंदिर को मैहर देवी का मंदिर कहा जाता है। मैहर का मतलब है मां का हार। मैहर नगरी से 5 किलोमीटर दूर त्रिकूट पर्वत पर माता शारदा देवी का वास है। पर्वत की चोटी के मध्य में ही शारदा माता का मंदिर है।
इस
मंदिर को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं। इस मंदिर को रोज रात में बंद कर
दिया जाता है, मान्यता है कि इस मंदिर में हर रात आल्हा और उदल नाम के दो
चिरंजीवी दर्शन करने आते हैं और उस दौरान अगर कोई मनुष्य मंदिर में रुकने
की कोशिश करता है तो उसकी मृत्यु हो जाती है।
मंदिर में स्थापित शारदा देवी की मूर्ति
हजारों सालों से रोज यहां दर्शन करने आ रहे हैं आल्हा और उदल
क्षेत्रीय
लोगों के अनुसार आल्हा और उदल जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध
किया था, वे भी शारदा माता के बड़े भक्त थें। इन दोनों ने ही सबसे पहले
जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी। इसके बाद आल्हा ने इस
मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था। माता ने उन्हें
अमरत्व का आशीर्वाद दिया था। आल्हा माता को शारदा माई कह कर पुकारा करता
था। तभी से ये मंदिर भी माता शारदा माई के नाम से प्रसिद्ध हो गया। आज भी
यही मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा और उदल ही
करते हैं। मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है,जिसे आल्हा तालाब कहा
जाता है। यही नहीं, तालाब से 2 किलोमीटर और आगे जाने पर एक अखाड़ा मिलता
है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां आल्हा और उदल कुश्ती लड़ा करते थे।
त्रिकूट पर्वत
रात में मंदिर कर दिया जाता है बंद
मां
शारदा के मंदिर को रात में बंद कर दिया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि
इसी समय वे दोनों भाई मां के दर्शन करने आते हैं। दोनों भाई मां की पूजन के
साथ ही उनका शृंगार भी करते हैं। इसलिए रात के समय यहां कोई नहीं ठहरता।
श्रद्धालुओं की मान्यता है कि जो हठपूर्वक यहां रुकने की कोशिश करता है,
उसकी मृत्यु हो सकती है।
मंदिर में स्थापित शारदा देवी की मूर्ति
पूरे भारत
में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है। इसी पर्वत की चोटी
पर माता के साथ ही काल भैरवी, भगवान हनुमान, देवी काली, देवी दुर्गा,
गौरी-शंकर, शेष नाग, फूलमती माता, ब्रह्म देव और जलापा देवी की भी पूजा की
जाती है।
मैहर मंदिर माता
त्रिकूट
पर्वत पर मैहर देवी का मंदिर भू-तल से छह सौ फीट की ऊंचाई पर है। मंदिर तक
जाने वाले मार्ग में 300 फीट तक की यात्रा गाड़ी से भी की जा सकती है।
मैहर देवी मां शारदा तक पहुंचने की यात्रा को चार भागों में बांटी गई है।
प्रथम भाग की यात्रा में चार सौ अस्सी सीढ़ियों को पार करना होता है। दूसरे
भाग 228 सीढ़ियों का है। इस यात्रा खंड में पानी व अन्य पेय पदार्थों की
व्यवस्था होती है। यहां पर आदिश्वरी माई का प्राचीन मंदिर है। यात्रा के
तीसरे भाग में 147 सीढ़ियां हैं। चौथे और आखिरी भाग में 196 सीढ़ियां पार
करनी होती हैं। तब मां शारदा का मंदिर आता है।
मंदिर तक पहुंचने के लिए रोपवे
हवाई मार्ग-
सतना स160 कि.मी. की दूरी पर जबलपुर और 140 कि.मी. की दूरी पर खजुराहो
एयरपोर्ट है। वहां तक हवाई मार्ग से आकर सड़क मार्ग से सतना पहुंचा जा सकता
है।
रेल मार्ग- मैहर जिले के लिए देश के कई शहरों से रेल गाड़ियां चलती है।
सड़क मार्ग- मैहर जिला देश के कई शहरों के सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। इसलिए यहां बस या निजी वाहन से पहुंचा जा सकता है।
श्रीराम नवमी 15 को: क्या आप जानते हैं रामायण की ये रोचक बातें?
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को श्रीराम नवमी का पर्व मनाया जाता
है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप
में धरती पर अवतार लिया था। इस बार श्रीराम नवमी का पर्व 15 अप्रैल,
शुक्रवार को है। श्रीराम नवमी के अवसर पर हम आज कुछ ऐसी रोचक बातें बता रहे
हैं, जिन्हें बहुत कम लोग जानते हैं।
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