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Wednesday, 6 April 2016

'भाई-बहन' आपस में करते हैं शादी, खतरे में है इन आदिवासियों की लाइफ


रायपुर. छत्तीसगढ़ देश का ऐसा स्टेट है जहां सबसे ज्यादा आदिवासी कम्युनिटीज हैं। यहां सबकी अपनी कल्चर और परंपराएं हैं। इन्हीं में से एक है धुरवा आदिवासी समाज। इस समाज में एक दिलचस्प प्रथा है। इनके यहां बहन की बेटी से मामा के बेटे (ममेरे फुफेरे भाई बहन) की शादी का चलन है। हालांकि, अब इस परंपरा को खत्म करने के लिए समाज के भीतर ही डिबेट शुरू हो गई है।
किस तरह की है प्रथा और क्यों वसूला जाता है जुर्माना
- धुरवा समाज में बाल विवाह प्रथा का भी चलन है। विवाह की इस अनूठी परंपरा को न मानने वालों पर जुर्माना लगाया जाता है।
- हालांकि, अब ममेरे-फुफेरे, भाई-बहन की शादी को समाज में एक धड़ा बंद करने का दबाव डाल रहा है।
इसलिए खतरे में है इनकी लाइफ
 रोजगार की कमी जंगल में बढ़ते औद्योगिक दखल की वजह से इन आदिवासियों की जाति खतरे में बताई जाती है।
- आदिवासी समाज के नेताओं की मानें तो सरकार ने 2002 में विशेष आरक्षण देना तय किया, लेकिन अभी तक कुछ किया नहीं गया है।
- बुरी नजर से बचने के लिए मन्नत के साथ वे हर तीसरे साल होने वाले मेले में अपनी आराध्या देवी को चश्मे चढ़ाते हैं।
- छत्तीसगढ़ में बस्तर की कांगेरघाटी के इर्दगिर्द बसे धुरवा जाति के लोग बेटे-बेटियों की शादी में अग्नि को नहीं बल्कि पानी को साक्षी मानते हैं।
- हालांकि, अब समाज में शादियों के रजिस्ट्रेशन और शादी के लिए लड़की की न्यूनतम उम्र 18 और लड़के की 21 साल की होने की बात की जाने लगी है।
- समाज के सचिव गंगाराम कश्यप के मुताबिक इस प्रथा से बेटियों को अनचाहे वर को भी मंजूर करना मजबूरी है।


धुरवा आदिवासियों की जाति खतरे में!
- छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बॉर्डर पर 88 गांवों में धुरवा जनजाति आबाद है।
- धुरवा आदिवासियों को अपनी बोली, भाषा, संस्कृति, रहन-सहन पर खतरे का एहसास होने लगा है।
- जागरुकता की कमी ने इन्हें विकास की दौड़ में भी काफी पीछे छोड़ दिया है।
- सरकार इनके लिए कानून बनाकर बचाने की बात तो कह रही है पर हकीकत कुछ और ही है।
- समाज के नेताओं का दावा है कि धुरवा आदिवासी जंगल, जल, जमीन का हक खो चुके हैं।
- धुरवा अपने जंगलों से बेदखल होकर दिहाड़ी मजदूरी के लिए भी भटकते हैं।
- इस बारे में धुरवा समाज के सचिव गंगाराम कश्यप ने कहा है कि छत्तीसगढ़ में धुरवा आदिवासियों की हालत बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती।


कोटमसर की फेमस गुफाओं के नजदीक रहते हैं आदिवासी
- ये आदिवासी कोटमसर की गुफाओं के नजदीक रहते हैं। बता दें कि कोटमसर गांव से सटी होने के कारण इनका नाम कोटमसर गुफाएं रखा गया है।
- कहते हैं कि जमीन से 55 फीट नीचे 330 मीटर लंबाई तक फैली इन गुफाओं में हजारों साल पहले आदिमानव रहा करते थे।
- यहां आदिमानव के बेडरूम्स भी मिले हैं। अंदर इतना घना अंधेरा रहता है कि वहां पहुंचने के बाद इंसान को कुछ दिखाई नहीं देता।
- गुफा के अंदर कई हिस्सों में पानी है, जिसमें रहस्यमयी अंधी मछलियां पाई जाती हैं।
- रहस्यमयी गुफा और मछलियों को देखने यहां दुनिया भर से टूरिस्ट्स और रिसर्चर्स आते हैं।
- इन रहस्यमयी गुफाओं पर जियोलॉजिस्ट लगातार स्टडी कर रहे हैं।
- गुफाएं चूने के पत्थर से बनी संरचनाएं हैं, जिन्हें स्टेलेग्माइट व स्टेलेक्टाइट कहा जाता है।
- धुरवा आदिवासियों के डांस, गीत और आपसी बातचीत की बोली धुरवी कहलाती है।


छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बॉर्डर पर बसे गांवों में धुरवा जनजाति आबाद है।

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